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लेखनी प्रतियोगिता -01-Jun-2023 अतीत की भूली बिसरी यादें



                        अतीत की भूली बिसरी यादें

                 जब रमा को  किसीने बताया कि उसके पति को  अपनी किडनी देकर उनको  नया  जीवन देने वाली और कोई नहीं उसकी अपनी  सौतेली मां है। यह सब जानकर उसका चेहरा शर्म से लाल होघया। अब वह सोच रही थी कि वह सौतेली मां से किस तरह आंख मिला सकेगी।

        उसको वह दिन आज भी याद था कि उसने अपनी छोटी बहिन के साथ मिलकर अपनीसौतेली मां का किस तरह अपमान किया था। लेकिन सुशीला ने उन दोनौ को कभी भी सौतेली नहीं समझा था।

      यह सोचते  सोचते वह अपनी पिछली भूली बिसरी यादौ में खोगयी । और उसको आज से दस  साल पहले की यादें ताजा होगयी।

           "मैं उस औरत को कभी भी अपनी "माँ" स्वीकार नही करूँगी ,चाहे कुछ भी हो जाये, वो 35 -36साल की कुँवारी औरत हम बच्चों  को माँ का प्यार कैसे दे सकती है , वो बच्चों का दर्द क्या समझेगी ,जो अपने जीवन में कभी मां बनी ही नही वह हमारा दर्द क्या समझेगी। उसकी नजर तो पापा की सम्पत्ति पर है .!!
        
                अरे हाँ मैं उसे क्यूँ कोस रही हूँ , मुझे तो शर्म  आती है पापा की सोच पर हम बच्चों का देख भाल करने के आड़ में ,अपना दैहिक सुख पूरा करना चाहते है।  उनको ना जाने क्यूँ इतनी सी बात समझ नही आ रही है । "

        "शांति से सोच रमा  दो तीन सालौ में तुम दोनों बहन तो शादी करके अपने अपने घर चली जाओगी ।उसके बाद भैया का क्या होगा.?" ,कहते हुए सरला उसके सर को प्यार से सहलाने लगी ।

           ।तभी रमा बोली,"  बुआ अगर माँ की जगह पापा को कुछ हो जाता तो भी आप यही बात इतनी आसानी से माँ के लिए कहती ,?? 


            सरला  बोली , "शायद कभी नही कहती क्योंकि स्त्री अंदर से बहुत मजबूत होती है। वह हर मुश्किल का सामना बडे़ साहस के साथ कर सकती है घर  बाहर दोनो को संभाल सकती है ,  लेकिन पुरुष के लिए एकाकी जीवन बहुत मुश्किल होता है । वह भटक जाता है। उसके लिए यह सम्भव नहीं है।"

          " ठीक है बुआ आपको पापा सही लगते है तो आप उनका साथ दे सकती हो ,पर हम दोनो बहन इस रिश्ते को कभी नही स्वीकारेंगे वो "दूसरी औरत" हमारी माँ कभी नही बन सकती?",  कहते हुए रमा  कमरे से बाहर चली गयी।

             सुख के समय को बीतते कहाँ समय लगता है , देखते -देखते  आठ  दस साल हो गए ,दोनो बेटियों  की शादी हो गयी दोनो ही अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गयी । पर शादी के बाद इतने सालों में दोनो ने कभी मायके का रुख नही किया ।पापा को भी माफ नही कर पाई .।

            एक दिन दोपहर को  सूरज प्रकाश के घर का डोर बेल बजा दरवाज़ा  सूरज प्रकाश की  दूसरी  पत्नी ने  खोला। सामने रमा  को खड़े देखकरे हैरान हो गयी।

        जब तक कुछ समझ पाती रमा  उनके पैरों में गिर कर रोने लगी। और बोली,"  मुझे माफ़ कर दो माँ मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई  मैं आपको समझ नही सकी थी।  आप महान हो माँ मुझे माफ़ कर दो।"

  ",उठो  बेटी " कहकर उन्होंने रमा  को गले से लगा लियाऔर उनके माथे को  पागलो की तरह चूमने लगी।
 सूरज प्रकाश ने  तंज कसते हुए पूछा ,"  ये दूसरी औरत तुम्हारी माँ कब से हो गयी ?"

           रमा  सिसकते हुए बोली ," आपको तो सब पता है पापा फिर आप ऐसा क्यूँ बोल रहे  हो ?"

            ओह तो आज तुम्हे पता चल गया कि तुम्हारे पति को किडनी दान कर तुम्हारे सुहाग को जीवन दान देने वाला , अजनबी कोई और नही बल्कि ये  दूसरी औरत ही है कहते  हुए व्यंग्यात्म मुस्कान सूरज प्रकाश के चेहरे पर फैल गई।

               वह बोले," तुम जैसी कुछ लोगों की वज़ह से  ही दुनिया कहती है कि  औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है ।"


        वह  कुछ और बोलते उसके पहले ही उनकी पत्नी  बोली," जाने भी दो रहने दो पुरानी बातें ! जल्दी जाकर मिठाई लेकर आइये ना आज मैं पहली बार माँ बनी हूँ । " ,कहते कहते रो पड़ी।

        सूरज प्रकाश  भी अपनी आँखों की नमी पोछते हुए थैला लेकर घर से बाहर निकल गये।

आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "

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6 Comments

Babita patel

02-Jun-2023 03:35 PM

nice

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Abhilasha Deshpande

02-Jun-2023 12:47 PM

nice

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Abhinav ji

02-Jun-2023 08:41 AM

Very nice 👍

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